हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फरमाया,इंसान अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में कभी कभी मेहनतों, कठिनाइयों और मुसीबतों के असर में और सामाजिक ज़िन्दगी में कभी कभी बदलाव लाने वाली घटनाओं के प्रभाव में मिसाल के तौर पर जेहाद अल्लाह की राह में ख़र्च करने या ज़रूरतमंदों की मदद के आम माहौल में अल्लाह के ज़िक्र के तत्व (तारीफ़, हम्द व शुक्र) के क़रीब हो जाता है,
इसी तरह कभी कभी इच्छाओं के प्रभाव में भोग विलास की महफ़िलों में बैठकर इससे दूर हो जाता है।
वह तत्व जो इन सभी हालात में इंसान को ‘ज़िक्र’ की जन्नत के क़रीब कर देती है या और ज़्यादा क़रीब हो जाने में मदद करती है, नमाज़ हैं।
नमाज़ मन की तैयारी से हो तो आदमी को अल्लाह की निकटता के ज़्यादा क़रीब कर देती है, उसे बुलंदी पर पहुंचाती है और ग़फ़लत तथा मायूसी की हालत में आदमी के कान में होशियर व सावधान रहने की घंटी बजाती है और उसे नूरानी वादियों के क़रीब पहुंचा देती है। इसलिए नमाज़ किसी भी हालत में छूटनी नहीं चाहिए।